महर्षि पतंजलि मुनि ने इस प्रश्न के उत्तर में योगदर्शन शास्त्र के समाधिपाद में दूसरा सूत्र लिखा है, जो इस प्रकार है -
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।।
इस सूत्र का अर्थ है कि चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग कहते हैं | योग को समझने के लिए चित्त और वृत्तियों को समझना आवश्यक है ।
संस्कृत के चिति-संज्ञाने धातु से चित्त शब्द बना है। इसी चिति-संज्ञाने धातु से चेतन शब्द भी बना है। अत: इस ' योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: ' सूत्र में जो चित्त शब्द आया है , उसका सम्बन्ध आत्मा की चेतनता से है। आत्मा चेतन है। चेतन का सबसे बड़ा गुण अपने अस्तित्व का ज्ञान होना है। हम हैं, यह ज्ञान केवल चेतन में ही पाया जाता है। चेतन की यह शक्ति चित्त अर्थात मन में निहित है। यदि यह सर्वशक्तिमान मन अर्थात चित्त हमारे वश में हो गया तो, सारी शक्तियां हमारे वश में होगी।
चित्त क्या है यह तो आपने जान ही लिया है। चित्त की वृत्तियाँ क्या है ? अब यह जानना है। चित्त अर्थात मन की हलचल, गतिविधि या क्रिया को चित्त की वृत्ति कहते हैं।
इस प्रकार अर्थात चित्त की हलचल या गतिविधि को रोककर अपने वश में करना ही योग है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें