योगदर्शंन शास्त्र का योग ।
योग क्या है ? योग शब्द संस्कृत के 'युज' धातु से बना है।पाणिनिगण में 'युज' धातु तीन गणों में उपस्थित है। ये गण रुधादिगण, चुरादिगण और दिवादिगण हैं। रुधादिगण में योग शब्द संस्कृत के 'युजिर-योगे' धातु से बना है, इस योग का अर्थ मिलाना या जोड़ना है जैसे अक्षरों का जोड़ना,संख्याओं का जोड़ना आदि। चुरादिगण में योग शब्द संस्कृत के 'युज संयमने' धातु से
बना है, इस योग का अर्थ है मन का संयम या मन का नियमन जैसे मन का भक्ति में नियमन, मन का परमात्मा में नियमन आदि नियमन में अपने अस्तित्व को किसी अन्य के अधीन करना,जो योग के सच्चे स्वरूप के विरुद्ध है। दिवादिगण का योग शब्द संस्कृत के 'युज-समाधौ' धातु से बना है, यह योग शब्द समाधि का अर्थ देता है । समाधि में चित्त अर्थात मन की वृत्तियाँ अपने वश में होकर रुक जाती हैं।महर्षि पतंजलि मुनि ने योगदर्शंन शास्त्र में जिस योग शब्द का प्रयोग किया है वह शब्द संस्कृत के 'युज-समाधौ' धातु से बना है |वैदिक साहित्य में वेदों, उपनिषदों, पुराणों एवं दर्शनशास्त्रों का सर्वोच्च स्थान है। महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योगदर्शन शास्त्र छ: प्रसिद्ध दर्शनशास्त्रों में से एक है। इस दर्शनशास्त्र के चार भाग, समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद है। यह सबसे छोटा दर्शनशास्त्र है और योगविद्या का सबसे प्रमाणिक और प्राचीन ग्रंथ है। इसमें 194 सूत्र हैं ।
योगदर्शन शास्त्र का प्रथम भाग समाधिपाद है, जिसका पहला सूत्र है-
अथ योगानुशासनम् ।
इस सूत्र का अर्थ है- अब यहाँ योग का अनुशासन आरम्भ कर रहे हैं। शासन का अर्थ शिक्षा और उपदेश है। सूत्र में शासन के पहले 'अनु' उपसर्ग लगा है। अनु का अर्थ है पीछे या परमपरा, अनुशासन का अर्थ हुआ, जो पीछे या परम्परा या प्राचीन काल से चली आ रही शिक्षा या उपदेश।
इस प्रकार योगदर्शन शास्त्र के पहले सूत्र का अर्थ हुआ हम योग की वही शिक्षा या उपदेश प्रारंभ कर रहे हैं जो प्राचीन काल से या परम्परा से चला आ रहा है।
योगदर्शन शास्त्र के पहले सूत्र से विदित है कि महर्षि पतंजलि मुनि योग विद्या के प्रणेता या प्रवर्त्तक नहीं है, योग विद्या उनसे पहले भी प्रचलित थी। महर्षि पतंजलि मुनि ने योग विद्या को गुरुमुख से जानकर और साधना करके और उसका अनुभव प्राप्त करके एक ग्रन्थ के रूप में लिखा अत: उन्हें सर्वप्रथम योगविद्या को एक शास्त्र का रूप देने का गौरव प्राप्त है।
योगाचार्य सत्यवीर सिंह मुनि सुआवाला अफजलगढ़ बिजनौर उ0प्र0
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें