बुधवार, 17 जनवरी 2024

Swayam par bharosa karo.

 स्वयं पर भरोसा करो। 

यजुर्वेद का चालीसवां अध्याय अन्तिम अध्याय है इसके बाद यजुर्वेद में अन्य कोई अध्याय नहीं है। यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय को ईशावास्योपनिषद् के नाम से भी जाना जाता है।

उपनिषदों को वेदों की आत्मा कहा गया है। पाश्चात्य देशों में भी उपनिषदों के ज्ञान की बड़ी चर्चा है। ईशावास्योपनिषद् सब उपनिषदों का शिरमौर कहा जाता है। अखिल भूमण्लीय सर्व शिरोमणि मुनि समाज के संस्थापक आद्य योगेश्वर मुनीश्वर श्री शिव मुनि जी ने अन्तिम कृति के रूप में ईशावास्योपनिषद् का भाष्य किया है। श्री शिव मुनि द्वारा ईशावास्योपनिषद् के पहले मंत्र का भाष्य निम्नलिखित है। 

मंत्र -

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत। 

तेन त्यक्त भुज्जीथा: मा गृध: कस्य स्विद्धनम्।। १।। 

अन्वय -

इदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् ईशावास्यम् । तेन त्यक्तेन भुज्जीथा: कस्यस्विद् धनम् मागृध: ।। १।। 

शब्दार्थ -

इदम् = यह

सर्वम् = सब

यत्किंच = जो कुछ

जगत्याम् = संसार में

जगत् = चलने फिरने वाला है अर्थात सजीव शरीर है वह

ईशावास्यम् = "ईशस्य आवास्यम्" ईश्वर के (ऐश्वर्य वाली आत्मा के) रहने का घर है। 

तेन = उसी के

त्यक्तेन = दिए हुए को

भुज्जीथा = भोग करो

कस्यस्वि = किसी भी दूसरे के

धनम् = धन की

मा गृध: = अभिलाषा, इच्छा या लालच मत करो। 

अर्थ -

यह जो कुछ इस संसार में जगत् रूप से अर्थात चलने फिरने वाला है ( सजीव शरीर है ) वही मालिक के या ऐश्वर्य वाले ईश्वर के रहने का घर है; उसी के दिए हुए को अर्थात उसी की कमाई को भोगो दूसरे किसी के भी धन का लालच, इच्छा या अभिलाषा ( या भरोसा ) मत करो। यहां ईश यह शब्द " ईश= ऐश्वर्य "धातु से बना है। ईश से तात्पर्य यह है कि तुम्हारे इस सजीव शरीर के भीतर जो तुम्हारी आत्मा है वह ऐश्वर्यों से युक्त ईश्वर है। वहीं तुम्हारी परिस्थितियों का तुम्हारे संसार का ईश है अर्थात मालिक है ( तुम्हारे भाग्य का विधाता है ) अतः तुम किसी भी दूसरे के धन की अभिलाषा मत करो।

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