रविवार, 21 जनवरी 2024

Aatmhatya sabse bada pap hai.

 आत्महत्या सबसे बड़ा पाप।  

आत्महत्या से पहले आत्मा को समझना होगा। आत्मा क्या है? आध्यात्मिक भाषा में अपने आप को या अपने निज को आत्मा कहते हैं। जब व्यक्ति अपने आप से अपने को नष्ट करता है, तब यह निकृष्टतम कार्य आत्महत्या कहलाता है। इस विषय में ईशावास्योपनिषद् के तीसरे मंत्र में लिखा है। 

असुर्या नाम ते लोका अन्धेर तमसावृता:। 

तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जना: ।। ३।। 


सद् गुरुदेव श्री शिव मुनि जी ने इस मंत्र का भाष्य निम्नलिखित प्रकार से किया है। 

अन्वय -

के जना: आत्महन: ये प्रेत्ये च अन्धेन तमसाआवृता: असूर्य्या: नाम लोका: तान् अभिगच्छन्ति। 

कौन से लोग आत्महन, आत्महत्यारे  या आत्मा की हत्या करने वाले है? कि जो मुर्दा के समान निर्जीव होकर और अंधकार से घिर कर (जो) आत्मज्ञान से हीन वाली जो अवस्था है उसको प्राप्त होतें हैं। शब्दार्थ - 

(ये) के जना: = जो लोग

आत्महन: = आत्मा की हत्या करने वाले हैं अर्थात अपने से अपना विनाश करने वाले हैं वे लोग

प्रेत्य = मर कर अर्थात एक तरह से जड़ और निर्जीव होकर

च = और

अन्धेन तमसा आवृता = अज्ञानान्धकार से घिर कर

असूर्य्या: नाम लोका: = सूर्य्य से हीन अर्थात ज्ञान रूपी सूर्य्य या प्रकाश से हीन जो अज्ञानावस्था है

तान् ते अभिगच्छन्ति = उसको वे प्राप्त होतें हैं। 

मंत्रार्थ -

जो लोग आत्महन हैं; आत्मा की हत्या करने वाले हैं अर्थात अपने से अपना विनाश करने वाले हैं। वे लोग अज्ञानान्धकार से घिर कर ज्ञान रूपी सूर्य्य या प्रकाश से हीन जो अवस्था है उसको प्राप्त होतें हैं।

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