शनिवार, 9 दिसंबर 2023

What is Pramana Vritti?

 प्रमाण क्या है ?  

महर्षि पतंजलि मुनि ने योगदर्शन शास्त्र के समाधिपाद के छठे सूत्र में बताया था कि चित्तवृत्तियों के पांच भेद प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति हैं। अब एक - एक करके प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति को जानेगें। महर्षि पतंजलि मुनि ने योगदर्शन शास्त्र के समाधिपाद के सातवें सूत्र में प्रमाण के बारे में लिखा है -

प्रत्यक्षानुमानागमा: प्रमाणानि।। 


इस सूत्र का अर्थ है कि प्रमाण तीन प्रकार के होते हैं, ये प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम हैं। 

किसी भी विषय का प्रत्यक्ष हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा करते हैं। जैसे रूप का ज्ञान आखों द्वारा, रस का ज्ञान जिह्वा द्वारा, शब्द का कानों द्वारा, गंध का ज्ञान नाक द्वारा और स्पर्श का ज्ञान त्वचा द्वारा किया जाता है। आत्मा स्वयं प्रकाशित है। जब तक शरीर में आत्मा है तभी तक ज्ञानेन्द्रियाँ विषय को प्रत्यक्ष कर पायेंगी। आत्मा की तरंग चित्त है, चित्त की वृत्ति मन है और मन की वृत्तियाँ हमारा जीवन निर्धारित करतीं हैं। इसलिए योगदर्शन शास्त्र में मन की वृत्तियों का निरोध कर अर्थात मन की वृत्तियों को रोककर अपने आप में अपने सच्चे स्वरूप अर्थात आत्मा में स्थित होना योग का लक्ष्य बताया गया है। 

प्रत्यक्ष प्रमाण के बारें आप जान गए होंगे, अब अनुमान प्रमाण के बारे में जानेंगे, यदि कहीं धुआँ उठ रहा है तो हम अनुमान लगा लेते है कि वहाँ अग्नि होगी। अनुमान का प्रमाण हम ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष  हुए विषयों के पूर्व अनुभव के आधार पर करते हैं। 

आगम प्रमाण के रूप में वेदों , ज्ञान की पुस्तकों, सद्गुरुओं, आप्तपुरुषों के उपदेशों को रखा जाता हैं। 

किसी भी विषय को इन्हीं प्रमाणों द्वारा तर्क की कसौटी पर कसकर स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है। 

योगाचार्य सत्यवीर सिंह मुनि। सु

आवाला, अफजलगढ़, बिजनौर, उ0प्र0।

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